(श्याम चौरसिया )
1925 की विजय दशमी को रोपा गया राष्ट्रवादी संगठन आरआरएस का पौधा 100 साल में बढ़ कर विश्व का सबसे बड़े गैर राजनीतिक संघठन में बदल सेवा, त्याग, समर्पण, राष्ट्रवाद का अलख जगा रहा है। ये राष्ट्रवादी संघठन आतंकवादियों से ज्यादा कुछ विपक्षी दलों, गैर सनातनियो की आँखों की किरकिरी,कांटा बना हुआ है। वजह? इस संगठन की दैवीय सक्रियता की बजह से न तो आंतकियो, घुसपैठियों, कुछ गैर सनातनी नेताओं की दाल गल पाती है। उनके मंसूबे फेल हो जाते है। हाल में संभल, बीड, बरेली सहित कुछ अन्य जगह जघन्य, अमानवीय ,गैर संवैधानिक घटनाओं से साबित हो चुका है। यदि ये असुर कामयाब हो जाते तो देश सुलह अपनी लय खो सकता था।
मजेदार बात ये है कि विपक्ष आतंकी संघठनो की बजाय राष्ट्र रक्षक आरआरएस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करके खुद अपने कपड़े उतार रहा है।
भारत ये सोचने के लिए मजबूर है। क्या वजह है। विपक्ष राष्ट्र में बत्ती देने वालों की वकालत करता है। राष्ट्र निर्माता संघ को कोसता है। मतलब साफ है। यदि संघ रोड़ा न बने तो विपक्ष देश पर कब्जा करके मनचाहा कर सकता है। भारत को बंग्लादेश, अफगानिस्थान, पाकिस्तान बना सनातनियो की आर्थिक, सामाजिक कमर तोड़ सकते है। ममता बैनर्जी किसी हद तक बंगाल में सफल भी है। यदि आसाम में बीजेपी सत्ता में न होती तो आसाम में सनातनियो की सम्पतियों पर रोहिंग्यो, घुसपैठियों का कब्जा हो जाता।
Pm मोदी ने आरआरएस के त्याग,तपस्या का राष्टीय मूल्यांकन करके 40 ग्राम का रजत सिक्का जारी करके संध का सम्मान किया है। ये पहला सिक्का है। जिस पर भारत माता को नमन करने वाले बीरो ओर दूसरी ओर अशोक चिन्ह है।