(श्याम चौरसिया )
दिनों दिन सोयाबीन के गोते लगाते भावों ने बाजारों की चमक,रौनक को ग्रहण लगा दिया। चमक फीकी सी है। करवा चौथ में सुहागनों की खरीददारी से साड़ियों, प्रसाधन सामग्री विक्रेताओं की चांदी रही। फिर से चहल पहल गायब हो जाने से बाजार बेनूरपने का संताप भोगने लगे। किराना और कुछ अन्य दुकानों को छोड़ दिया जाए तो दुकानों पर सन्नाटे का कब्ज़ा हो चुका है। सराफा, इलेक्टानिक, कपड़ा सहित अन्य वस्तुओं में खरीददारी नाम मात्र की बची है। जबकि अभी शादी विवाह के सीजन का श्री गणेश होना बाकी है
बाजारों में थोड़ी बहुत चहलपहल नोकरी पेशा लोगो की वजह से है।
वर्षो बाद ये पहला मौका है। जब कृषि मंडियों, बाजारों में 70% भी रौनक नही दिखती। उसकी बड़ी वजह किसान और व्यापारी 03000-03500 सो आसपास आ चुके सोयाबीन के भावों को बताते हुए कहते है। इतने कम रेट में बेचने से भारी घाटा हो रहा है। कम से कम 7000 सो के भाव मिले तो खर्च निकले।मेहनत वसूल होवे। मानसून, पीला मोजेक ने फसल 30% भी पैदा नही होने दी।
वैसे भी गत सालों की तुलना में सोयाबीन का उत्पादन 30% के लगभग है। कम उत्पादन को देखते हुए भाव अधिक होना चाहिए। मगर उल्टा होते देख किसान हैरत में है। सोयाबीन गोते लगाने से सोयाबीन तेल के भाव भी उड़ान नही भर पा रहे है। वजह gst घटना। 30-35 लीटर की कमीजाने से रसोई की लागत घट कि चुकी है। सब्जियां भी सस्ती होती जा रही है।
समर्थन मूल्य 5100 के भावों पर सरकार सोयाबीन की खरीददारी दीपावली बाद करेगी।पंजीयन जारी है। इस भाव पर एक दम सुखी, साफ सुथरी, कचरा रहित सोयाबीन बेचना किसानों को घाटे का सौदा लगता है। कारण मंडियों में व्यापारी थ्रेसर से निकली सोयाबीन खरीद लेते है। साफ करने के बाद बची खुची सोयाबीन 02 हजार में भी कोई शायद ही खरीदे। नतीजन समर्थन मूल्य पर अपेक्षित खरीददारी का अभाव अपेक्षित लगता है।
ये तय है। बाजार का नूर,रौनक, चहलपहल सोयाबीन के भावों से जुड़ा है। खरीब में पीट चुका किसान अब रवी फसलों की बोबनी में जुट चुका है।