( श्याम चौरसिया)
दुनिया मे सबसे ज्यादा बुजुर्गों की विरासत के मामले में प्रख्यात जापान में संतानों के लिए माता पिता बोझ साबित हो रहे है। जापानी कपल्स अपने माता पिता से पिंड छुड़ाने के लिए उनकी हत्या जैसा जघन्य कुकर्म अंजाम देने से बाज नही आ रहे है। इस पाप की तह में बढ़ती महंगाई को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
विश्व की सबसे बड़ी तीसरी अर्थ व्यवस्था में भारत के 2 लाख प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले जापनियो को 16 लाख मिलते है। भारत के 04. % के मुकाबले जापान में मंहगाई दर सिर्फ 02.% के लगभग है। यानी भारत से 02 गुना कम। फिर माता पिता इस अमानवीय धर्म संकट का सामना क्यों कर रहे है?
इसकी मूल वजह जापानियों ने अपनी जरूरतों को बहुत बढ़ा लिया । बढ़ी जरूरतें आय को बे तोल बना देती है। जबकि भारतीय कम आय और महंगाई के बाबजूद अपने माता पिता की आज भी पूजा करते है।सम्मान देते है। मान दे,उनके हितों, स्वास्थ की चिंता करते है।
यदि भारतीय भी अपनी जरूरतों को जापानियों की तरह बढ़ा ले तो भारतीयो को भी माता पिता बोझ लग सकते है।
हलाकि घरु आजादी की लालसा में बहुत से बेटे- बहु अपने माता पिता,सास स्वसुर को वर्द्धाश्रम के हवाले करने से बाज नही आते। ये सामाजिक अमानवीय विकार अधिक पढ़े लिखे, महत्वकांशी परिवारों में ज्यादा जड़ जमाए हुए है। ग्रामीण जन इस विकार को पाप मानते है। इसलिए जैसे भी हो ग्रामीण अपने बुजुर्गों की छाया से मुक्त होना नही चाहते है।वे विरासत को बोझ न मान सहज कर रखते है।यद्यपि ग्रामो में भी शिक्षित अधिकांश बहुओं ने भी अपवाद स्वरूप बुजुर्गो की अपेक्षा,अवेहलना करना चालू कर दिया है। मगर सरकार की और से मिलने वाले बुजुर्ग पेंशन राहत देती है। पेंशन का कवच बुजुर्गो का स्वाभिमान है।आत्मबल है। ये भटकने से बचा रही है।
जापान में भी भारत के मुकाबले बुजुर्गो की सुरक्षा,आत्म सम्मान के कड़े नियम है। मगर इसके बाबजूद सनातनी संस्कारो के अभाव में जापानी माता पिता की बेकद्री करने से बाज नही आते।
बहुत सी संताने अपने माता पिता को आश्रय देने के बदले उनसे वेतन तक वसूलती है।