(जगदीश रघुवंशी )
सनातनी प्राचीन रावण वध परम्परा सबक के अलावा भविष्य में अनीति, असुर प्रवर्ति, अपराधों से बचने, उन पर सख्ती से नियंत्रण की प्रेरणा देती है। प्रेरित करती है। राष्ट्र की कोख में वट व्रक्ष बना दिए गए तुष्टिकरण के दैत्य के हिंसात्मक,क्रूर जघन्य अमानवीय आचरण से राष्ट्र धधक रहा है। अनहोनी की संभावनाओं के बीच जीने के लिए लाचार कर दिए गए। दिलचस्प। इस दुष्पर्वर्ती के जनक ही आज कालनेमि पन से राष्ट्र को गुमराह करके राष्ट्र के विश्वकर्माओं, आदित्य, को ग्रहण लगा, खुद को शिव साबित करने तुले है। मगर ये कालनेमि सोशल मीडिया की ताकत को भूल जाते है। इन कलनेमियो को लगता है। भारत आज भी 1947- 2011 के युग मे जी रहा है। मगर उनका ये मुगालता 140 करोड़ भारतीयों की जीवंत चेतना, लक्ष्य, सक्रियता दूर करके कदम कदम पर आयना दिखाने से बाज नही आती।
नतीजन काफी दुष्प्रचार के बाबजूद ये रावण अपना जनाधार, साख, विश्वसनीयता हासिल करने में बुरी तरह नाकाम है। भारत रावणों को पूरी तरह नकार चुकी है। भारत के सामने उनकी राष्ट्र विरोधी करतुते, कारनामे, दुरभि संधिया उजागर हो चुकी है। नतीजन वे पंच का चुनाव तक जीतने की हैसियत नही रखते।
हर साल की तरह इस साल भी रावण वध होगा। वध होगा। वध किया जाएगा। पर वध करने वाले में कितना रामत्व होगा? ये वध करने वाला और हजारों की संख्या में जुटे दर्शक भी जानते है। कहते कुछ नही है। मगर आपसी चर्चा में कह देते- रावण के पुतले को एक रावण ने फूंक दिया।
बस पुतला फूंका। बुराई का टोकरा सर से उतर ही नही सका। अगले बरस फिर।
परम्परा जो निभानी है।