( श्याम चोरसिया )
पैमाना तय किए बिना खेरातो से नवाजने के नाम पर खजाना लुटाने से अकर्मण्य,लोगों की फ़ौज समाज पर वजन तो हे ही साथ ही खेती की लागत कम होने की बजाय दिनों दिन बढ़ती जा रही है।बेरोजगारी की भैरवी गाने वाले भी बढ़ते जा रहे है।सबसे अहम खेरातो पर डाका डालने के लिए तरह तरह के छल,कपट छिद्र,प्रपंच,जालसाजी तक अपना सरकार में बत्ती दी जा रही है।यदि सरकारों ने डकैती से बचने-बचाने का प्रयास नही किया तो भारत भी श्री लंका हो सकता है।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर चेता चुके है।अनेक अर्थ शास्त्री भी खेरातो को मजबूत भारत के लिए शुभ, मंगलकारी नही बल्कि विनाशकारी मानते है।
खेरातो के बूते सत्ता हथियाने का पासा दिल्ली में सबसे पहले आप के केजरीवाल ने फेंका।इस अचूक पांसे ने 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस को मिट्टी में मिला दिया।यही गत बेजेपी की बनी। फिर हुए चुनाव।केजरीवाल ने फिर कमजोर नस को दबा खेरातो को पिटारा खोल फिर आप पार्टी ने कांग्रेस,बीजेपी को हासिए पर पटक दिया था। खैरातो से दिल्ली मस्त हो गयी।मगर बदले में दिल्ली की सेकड़ो बस्तियां अंधेरे में रह रही थी ।दूषित पानी पीकर बीमारियां मोल ले रही थी।दिल्ली एनसीआर में सांस लेना दूभर हो चुका था।केजरीवाल निजाम के बदलने के बाद बिजली,पानी की तंगी से कुछ राहत मिली।
महिलाओं को मिली मुफ्त यात्रा की सौगात ने दिल्ली परिवहन की आर्थिक कमर तोड़ दी।टायर,कल पुर्जे बदलने तक के लाले पड़ने से सेकड़ो बस भंगार में बदल चुकी। यही गत विधुत वितरण कम्पनियों की हो चुकी है।वेतन तक के लाले पड़ रहे है।
यही फार्मूला आप ने पंजाब और कांग्रेस ने हिमाचल कर्नाटक में अपना कर अनेक बीमारियों, विडम्बनाओं,विकृतियों को जन्म दे दिया। उसकी मिसाल कर्नाटक में कट्टर,राष्ट विरोधी तत्व, जिहादियों का तांडव है।कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस इन पर नकेल लगाने की बजाय सरक्षण दे रही है। जिसकी कीमत खेरातो पर कुर्बान हुए बहुसंख्यक सनातनियो को दमन,शोषण, तनाव, असुरक्षा, हिंसा,भेदभाव के रूप में चुकानी पड़ रही है।
केवल 08 महीनों में खेरातो का स्वाद कड़वा लगने लगा। यही गत अब तेलंगाना की होनी है। रुझान मिलना चालू हो गए।
कांग्रेस की बम्पर खेरातो के चुंगल में फस मप्र को कर्नाटक,हिमाचल,दिल्ली,पंजाब की तरह दुर्दशा का शिकार होने और सनातनी मूल्यों को बचाने के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी को भी सत्ता बचाने का विकल्प खेरातो की झड़ी लगाना लगा।
बीजेपी भी मान रही है। खेरातो के वरदान से बीजेपी ने 09% मतों के भारी अंतर से कांग्रेस के घुटने तोड़ दिए।
मप्र में मतदाताओं ने कांग्रेस की नारी सम्मान सहित 05 प्रमुख ग्यारंटीयो का जनाजा निकाल दिया।
मगर छत्तीसगढ़,राजस्थान के मतदाताओं ने खेरातो को ठुकरा सनातन,राष्टवाद के हमलावरों, घूसखोरी,घोटाले बाजो,कुशासन, तुष्टिकरण,भेदभाव को सबक सीखा पीढ़ियों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने का अवसर चुना।
सत्तारूढ़ दलो के पास खजाने का बंटाधार रोकने का मौका है।यदि वे खेरातो की डकैती को रोक सकते है तो ये किसानों, बेरोजगारों,बाजार, समाज, परिवार पर बड़ा उपकार हो सकता है।
सत्तारूढ़ दल खेरातो के पैमाने तय कर दे। पात्र, अपात्र के अंतर तय करे। ज्यादा कुछ करने की जरूरत नही लगती।राष्ट हित मे 02-03 बच्चो की माताओं, 03 लाख से अधिक आय वाले परिवारों, pm आवास या आवास निर्माण के लिए बैंक से कर्जा/आवास सब्सिडी का लाभ ले चुके, विलासक उपकरणों के उपभोग करने वाले,पेट्रोल/डीजल चलित वाहनों के मालिकों, अन्य खेरातो को पाने वालों की जिम्मेदारी,पारदर्शिता,ईमानदारी, से तस्दीक कराए। मुफ्त अनाज की पात्रता सहित अन्य खेरातो में भी यही पैमाना लागू करने से देश,समाज मे बत्ती देने वालो की छटनी सम्भव है। अन्य और तरीके भी है।
खेरातो के बूते दारू खोर मौज में है।काम करने जाने की बजाय मोबाइल में डाटा फूंकते।जिसकी वजह से शेक्षणिक गुणवत्ता घट रही है।युवाओं के पास डिग्री तो है।पर ज्ञान, हुनर कम युवाओं के पास है।हुनरमंद,ज्ञानी तो नोकरी पा जाते है।मगर डिग्रीधारी रोजगार के लिए सरकार को कोस बोझ बनते है। इसी वजह से युवा कौशल विकास में भी ज्यादा रुचि नही दिखाते। न इसकी चिंता मा बाप को बची है।सब एक अलग धारा में बह रहे है।
बची खुची कसर लाडली बहना योजना ने करके खेती को महंगा सौदा बना दिया।वजह। लेबर का टोटा।
अकर्मण्य,अकर्तव्य, विकृत, जालसाजी, छल, प्रपंच,लूट की संस्कृति जड़ जमा भारत के भविष्य को तबाह किए दे रही है।इसकी चिंता समय पर न करने के दुष्परिणाम भोगने के लिए तैयार रहना होगा। खेरातो पर डकैती डालने की जुगाड़ करने वालो के कबीले पैदा हो रहे है।