( श्याम चौरसिया )
मानसून विदा हुए एक पखवाड़ा होने के बाबजूद बारिस किसानो पर कहर ढा रही है।गीले खेतो में खरीब फ़सलो- सोयाबीन, मक्का,उड़द,आदि की न तो मजदूर न हार्डवेस्टर कटाई कर पा रहे है। हार्डवेस्टर खेतो में गड़ जाते है। जैसे तैसे कुछ हार्डवेस्टर रिस्क उठा कटाई तो कर देते है मगर खेतो का बंटाधार करके मुसीबत बढ़ा देते।किसान तलवार की धार पर चल रहा है। किसानों ने जीवन काल मे किसानो ने इतना बिकट काल नही भोगा।
कटाई की मजदूरी 05 सो रुपया प्रतिदिन या 15 सो से लेकर 18 सो रुपया बीघा हो चुकी है। तय करने,बयाना लेने के बाद भी मजदूर कब आँखे फेर ले। ग्यारंटी नही है।
फसल की दुर्दशा किसानों को न रोने न हसने दे रही है। वजह। जिन खेतो से बम्पर सोयाबीन पैदा होती थी । वे ही खेत प्रति बीघा 01 क्विंटल से भी कम सोयाबीन उगल किसानों की आर्थिक, मानसिक कमर तोड़ चुके है।
नाम मात्र के उत्पादन से मेहनत तो दूर पूरी तो छोड़ो आधी लागत भी वसूल न होने से किसानों पर गाज गिर चुकी है।
हालांकि सवेधनशील डॉक्टर मोहन यादव सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की मुसीबत,पीड़ा को गहराई से समझा। महसूस करके उदारता दिखाई है। सर्वे करने के बाद राहत देने का भरोसा दिलाया है।
कुछ जिलों में सर्वे टीम ने मोर्चा सम्हाल भी लिया है। अनेक जिलो में सर्वे टीम खेतो में उतर या झांक पाती उसके पूर्व ही बेचैन किसानों ने कटाई करवा दी या हार्डवेस्टर चलवा मुक्ति पा ली। ऐसे खेतो के नुकसान का जायजा सर्वे टीम कैसे लगी?
मालवा,निमाड़ के उज्जैन, इंदौर, देवास, धार, बड़वानी,झाबुआ में 50% और रायसेन,विदिशा,गुना अशोकनगर,दतिया,श्योपुर,शिवपुरी,ग्वालियर, मुरैना भिंड, टीकमगढ़, सागर, सतना आदि में 70 से लेकर 85% नुकसान आंका जा रहा है। शिवपुरी में तो टमाटर की पौध की बलि 02 बार चढ़ चुकी है।
लगातार बारिस की वजह से किसान बोबनी से चूक भी गए थे। वे फायदे में रहे। उनका खर्च खेत तैयार करने में ही हुआ।खाद,बीज, महंगे रसायनिक दवाओं के छिड़काव के खर्च की बचत हो गयी।
लगातार चार सालों से गच्चा दे रही सोयाबीन की फसल से अच्छी गुणवत्ता,मानक स्तर के बीजों का टोटा हो चुका है। सबसे लोकप्रिय 9560 लगातार धोखा दे रही है। उत्पादन गोते लगा चुका है। सरकार को बहुत महंगी सोयाबीन की बोबनी से बचने और अन्य खरीब फ़सलो की बोबनी पर जोर देना चाहिए। किसानों को जागरूक करके सोयाबीन से पिंड छुड़वाना पर्यावरण और खेतों के हित मे है। वजह सोयाबीन को निरोगी रखने में 03-04 बार महंगी रसायनिक दवाओं के छिड़काव से खेतों, स्वास्थ्य, जल स्त्रोतों का सत्यानाश।
अब किसानों के सामने रवी फ़सलो की बोबनी की हिमालयीन चुनोती है। आर्थिक रूप से कमर तुड़वा चुके किसानों को डीएपी, यूरिया ओर अच्छे बीजो के लिए न भटकना पड़े। इसका बन्दोबस नही हो पाया तो किसान तनाव मुक्त न हो सकेगा। इससे सरकार की लोकप्रियता प्रभावित होना लाजमी है।