( श्याम चौरसिया)
एक आंग्ल स्कूल में नागालैंड,मणिपुर की 08 युवतियां पिछले 04 सालों से हिंदी छोड़ अंग्रेजी सहित अन्य विषय पढा रही थी।वे सभी आंग्ल स्कूल परिसर स्थित होस्टल में ही रहती थी। होस्टल में कुल 03 रूम थे। एक रूम किचन के काम आता था।
वे 30 अप्रैल से चालू ग्रीष्म अवकाश में अपने वतन जाकर15 जून तक लौट आती थी। आंग्ल स्कूल बड़ी विषम परिस्थितियों में ही स्थानीय प्रतिभाओं को सेवा में लेता था। उसने अपने ऊपर अल्पसंख्यक होने का ठप्पा लगवा रखा था। विद्यार्थियों से अन्य निजी स्कूलों के मुकाबले अधिक फीस वसूलता और स्टाफ को नाम मात्र का वेतन देता था।
भेदभाव भी कम न था। स्तानीय प्रतिभाओं के मुकाबले गैर प्रांतीय स्टाफ को ज्यादा वेतन देता था। गैर प्रांतीय स्टाफ अधिकांश गैर सनातनी, धर्मांतरित होता था। यानी सनातन की खामियां बता कर,छल, प्रपंच,लोभ लालच देकर 02 हजार पुराने मत में शामिल कर लिया जाता था।
उन्ही 08 में एक सूजी भी थी। सूजी के पिता नही थे। मा थी। मणिपुर में खेती करके सूजी के 02 बड़े भाइयों,02 छोटी बहनों को पालती थी। सूजी पढ़ने में अव्वल थी। वहां की आंग्ल सोसायटी ने सूजी को मप्र के आंग्ल स्कूल में भेज दिया । ताकि वहाँ के धर्मांतरित लोगो को लगे कि सोसायटी रोजगार की चिता भी करती है।
सूजी के अन्य परिजन आंग्ल प्रचारकों के झांसे में नही आए। वे सनातनी ही है। सूजी के ताऊ का लड़का दिल्ली के एक सरकारी विभाग कर्मचारी है।बहन झारखंड के सरकारी स्कूल में टीचर है।
उन्हें सूची के मुकाबले चार गुना वेतन सहित अन्य सुविधाएं मिलती है। सूजी को लगता है- मत परिवर्तन की आड़ में उसकी योग्यता, अनुभव का शोषण हो रहा है। सूजी ने भेदभाव,शोषण की बात मेरी से कही। मेरी ने कबूल तो किया। लेकिन ढाई हजार किलोमीटर दूर वे कर भी क्या सकती थी। उनकी इस मजबूरी को आंग्ल स्कूल प्रबंधन दशकों से भुना रहा था। उनके अवसर सीमित करके उन्हें पिंजरे में कैद कर लिया गया था। प्रबधन का ऊपर से तुर्रा ये कि स्तानीय लोगो मे मुकाबले वेतन ज्यादा। रहना फ्री। बिजली पानी फ्री।
सूजी लगभग हर शाम को दीप्ति के घर चली जाया करती थी। दीप्ति के घर के सरस्, समरस माहौल में सूजी रच बस सी गयी थी। दीप्ति के बच्चे उसे मौसी मानते थे। दीप्ति के सत्संग में सूजी अपने बहन-भाइयों के बीच अनुभव करती थी। सूजी के संग कभी कभी लूसी भी आ जाती थी।
रविवार की दोपहर दीप्ति के यहाँ श्री गणेश की पूजा हो रही थी।सूजी जा पहुची। पूजा में शामिल होने में उसे झिझल लग रही थी। मगर दीप्ति और उसके पति रमन ने बड़े आग्रह,लाड़ से पूजा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। सूजी को बहुत अच्छा लगा। उसने भी सबकी तरह श्री गणेश को नैवेध अर्पित करके प्रणाम किया।
यज्ञ से प्रकृति संतुलन में मिलने वाले लाभों को सुन सूजी हैरत में पड़ गयी। मात्र थोड़े से प्रयास से हमे पोषित करने वाली प्रकृति का कर्ज चुका भविष्य उज्जवल बनवाने में योग दे लेते है।
सूजी दीप्ति के सत्संग के प्रभाव में आकर शाकाहारी होती जा रही थी।वह अक्सर बरखा, सुनीति मेडम के टिपन से लंच पर हाथ साफ करने से नही चूकती थी।
इस बार की गर्मी की छुट्टियों में सबके साथ सूजी नेजाने से इंकार कर दिया।उसने रिजर्वेधन भी नही कराया था। आंग्ल स्कूल के नियमो के अनुसार उसे 05 मई तक होस्टल खाली करना था।सूजी की परेशानी का समाधान बरखा ने कर दिया। हम लोग गांव जा रहे है। तुम हमारे घर को सम्हालो। रहो।
वतन न जाकर परिवार से न मिलने का कारण सुन दीप्ति हैरत से सूजी को देखने,पढ़ने लगी। मैं माँ को यही बुला रही हूं। वे भी तो पहाड़ो से निकल मैदानी संस्कृति का आनंद ले। सच तो ये है कि मुझे आप सब की तरह सिंधुर से मांग भरना, पैरों की अंगुलियों में बिछुड़ी और गले मे मंगलसूत्र धारण करना अच्छा लगता है। हमारे मत में ये सब कुछ होता ही नही है।न हम नारियों को कोई अधिकार है। आपके सनातन में तो नारियों के बिना कोई धार्मिक,सामाजिक अनुष्ठान संभव ही नही है। काश में भी सनातन का हिस्सा होती।
सूजी की उदाम इच्छा सुन दीप्ति ने सूजी को गले लगा लिया।यदि तुम सहमत हो तो तुम्हे मैं अपनी देवरानी बना सकती हूं।
और सूजी लाल,गुलाबी हो गयी।इतनी आसानी से उसका सपना पूरा हो जाएगा। सूजी को उम्मीद नही थी।
सूजी ने अपने परिजनों की उपस्थिति में सम्पन्न आत्मीय समारोह में फेरे ले लिए। सिंधुर से मांग भरवा ली। समारोह में आंग्ल स्कूल के प्रबंधक के सिवा सारे स्टाफ ने वर वधु को आशीर्वाद दिया था। पिंजरे से एक पक्षी आजाद होने का गम प्रबंधक को साल रहा था। इस साहसिक कदम से सूजी की माँ बेहद खुश थी।