हीटर,इंडेक्शनों से होता बंटाधार
मप्र-प्रदेश में 01.25 करोड़ से अधिक उज्ज्वला गैस कंनेक्सन धारी होने के बाबजूद मप्र के ग्रामीण / शहरी सब्जी भाजी की तरह हीटर,इंडक्शन खरीद,महंगी बिजली का आपराधिक दुरुपयोग करने में पंजाब, राजस्थान,हरियाणा, दिल्ली से कोसो आगे है। कोई रोक टोक ओर बंधन न होने का फायदा उठा कर जम कर हीटर, इंडेक्शनों का प्रयोग बेखोफ बदस्तूर जारी है।
सबूत? सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक उज्ज्वला गैस कंनेक्सन धारी साल में 01 सिलेंडर तक का उपयोग नही कर पा रहे है। कॅरोना काल मे मुफ्त दिए सिलेंडरों को भी 85% से अधिक उपभोक्ताओं ने मूल कीमत में अन्य को बेच राशि एन्टी कर ली थी। जाहिर। उज्ज्वला गैस कंनेक्सन पर अधिकार जताने वाले उसका उपयोग करने की बजाय मुफ्त बिजली पर मौज उड़ा सरकार में बत्ती दे रहे है। रहसरकार को दो तरफा नुकसान बर्दास्त करना पड़ा रहा है। दर्जनों अन्य मुफ्त की योजनाओं की तरह अधिकांश लोगों ने उज्ज्वला को भी दुधारू गाय में बदल डाला। उपयोग में न लेने की वजह से सिलेंडर मुफ्त में बनवाए गए शौचालयों की शोभा बनते देखे जा सकते है।
यदि उज्ज्वला का लक्ष्य के मुताबिक उपयोग किया गया होता तो मप्र के अलावा राजस्थान,पंजाब को बिजली की तंगी ओर उस तंगी से उपजी कटोत्री का सामना नही करना पड़ता। बिजली तंगी ओर कटोत्री की तह में हीटर,इंडक्शन ही है। हीटर ओर इंडेक्शनों के भारी उपयोग की वजह से मप्र विभिन्न बिजली कंपनियों का 06 हजार करोड़ का कर्जदार हो चुका है। ये कर्जा कम होने की बजाय और बढ़ना ही है।
उज्ज्वला घर घर पहुचाने के बाबजूद अधिकांश लोग उज्ज्वला का उपयोग करने की बजाय यदि हीटर,इंडेक्शनों का उपयोग कर रहे तो इसका मतलब ये है कि इस जमात को लगे मुफ्तखोरी के चस्के के आगे न राष्ट्र हित न पर्यावरण न सुरक्षा कोई मायने नही रखती। हीटर का उपयोग करते समय करंट लगने पर लोग विधुत कम्पनी पर ठीकरा फोड़ बतौर क्षति मुआवजा 04 लाख रुपया वसूलने के लिए तरह तरह के गोरख धंधे,फर्जीवाड़े को अंजाम दे,प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब हो जाते है। हर साल हर जिले में इस किस्म का फर्जीवाड़ा सांठगांठ, मिली भगत से अंजाम देने की ढेरों मिसालें है। गजब ये है। जांच के बाद दोषी पाए गए आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने से ये प्रवर्ति जड़ जमा चुकी है।
बिजली संकट से निजात पाने का एक मात्र समाधान हीटर, इंडक्शन और पुराने जमाने के कांच वाले टँगस्टन के बल्ब बनाने,निर्माण पर सख्ती से रोक लगाना ही है। वरना बिजली का उत्पादन 19 हजार मेगावाट तो क्या 40 हजार मेगावाट भी कर दिया जाए तो वह भी कम पड़ेगा। सब्जी भाजी की तरह खरीदे जा रहे हीटर,इंडेक्शनों की रफ्तार तो यही बयान करती है।