(श्याम चौरसिया)
बेरोजगारी का रोना रोने वालो के लिए बुरी खबर। इन दिनों खरीब फसलो की कटाई के लिए 0400 रुपये में भी लेबर दुर्लभ है। थ्रेशर पर काम करने वाले 200 रुपये प्रति घण्टे वसूलते है। ठेके में एक बीघा की फसल 02 हजार में कटाई चल रही है।
रसायनिक उर्वरकों के दाम घटाने से खेती की लागत कम होने की बजाय महंगी मजदूरी ने बढ़ा दी। खेत की हकाई,जुताई,बीज, कीट नाशक आदि की ऊंची लागत से किसान के पल्ले कुछ नही पड़ता।
अधिकांश किसानों का मानना है। बढ़ती मजदरी ने खेती को लाभ का नही बल्कि घाटे का सौदा बना दिया।
खेती लाभ तभी दे सकती है। जब मानव श्रम घरु हो। वांछित कृषि उपकरण हो।
बेरोजगारी का रोना रोने वाले नेता गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करते है। असल धरातल पर हकीकत भयानक है।पीड़ा दायक,चोकाने वाली है।
किसानों ने महंगी मजदूरी के लिए सरकारी खेरातो को जिम्मेदार बताते हुए कहाकि अब व्यक्ति न तो सरकार,न समाज न परिवार के प्रति जबाबदार, निष्ठावान रहा है।खेरातो की लत ने उसे आलसी, स्वार्थी,गैर जिम्मेदार, बेफिक्र बना दिया।
90% किसान आज विभिन्न खेरातो से 08 से 10 हजार रुपया महीना जुटा लेते है। उनमें विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पेंशन,किसान सम्मान निधि,व्रद्ध पेंशन,लाडली बहना, उज्ज्वला के सिलेंडर,मुफ्त बिजली, प्रधान मंत्री आवास, मुफ्त अनाज, प्राकृतिक/दुर्घटना हादसों में म्रत्यु पर मुआवजा , प्रसूति पर मिलने वाली राशि,फसल बीमा , विद्यार्थियों को सायकल, ड्रेस, छत्रवर्ती आदि अन्य शामिल है। वो तो गनीमत है। आधार ने किसी हद तक फर्जीवाड़े पर लगाम लगा दी। वरना एक ही बच्चा एक ही समय मे 03 से लेकर 05 सरकारी स्कूलों में भर्ती के चमत्कार भी देखे। ताकि छात्रवर्ती वसूले।मुआवजा के लोभ में मिलीभगत से पति/पत्नी/पुत्र /माता पिता को जीवित ही मार सरकार को चूना लगाने के अनेक सनसनीखेज मामले उजागर हो चुके है। हाल में ही भिंड,मुरैना,दतिया, नीमच में प्राकृतिक आपदा में मौत साबित करके मुआवजा वसूलने के मामले उजागर हो चुके है।वसूल डाले 04 लाख। इसके अलावा मनरेगा का फर्जीवाड़ा कुविख्यात है। कुए,तालाब कागजो में खोद कर दारू डकार गए।पहले से उपयोग में ले रहे कुए को मनरेगा में खोदना बता राशि डकार ली।
यानी धांधलियों,फर्जीवाड़े, सरकारी खेरातो ने व्यक्ति को कर्महीन बना दिया। वह सम्मान के संग जीविका अर्जन से तौबा करने लगा। जिसका सीधा दुष्यप्रभाव खेती पर पड़ा।
एक चोकाने वाला तथ्य भी है।अब फसलों की कटाई के लिए गांवों में कम मगर कस्बों, नगरों में ज्यादा लेबर है। जरूरत मंद किसान मजदूरों की शर्त पर कस्बो,नगरों से ले जाते है।