( श्याम चौरसिया )
पीला सोना सोयाबीन उत्पादक मप्र के किसानों का नूर सोयाबीन के गोते लगाते भावों ने उतार आर्थिक गणित का बंटाधार कर दिया। जिसका सीधा चिंताजनक असर रवी फ़सलो की बोबनी पड़ना तय है। अतिव्रष्टि कि बलि चढ़ी सोयाबीन का उत्पादन 10% भी नही हुआ। कुसी भाग्यशाली किसान का ही दाना भी साफ, बेदाग निकला। बाकी किसान का दाना उड़द के बराबर भी नही निकला। नतीजन भाव बुरी तरह गोते 15 साल पूर्व के 3000-3200 स्तर से नीचे जाने से किसानों को लागत,मेहनत तक वसूल न होने का भीषण तनाव में है।
सोयाबीन फसल सबसे महंगी फसलों में से एक है। इस साल मौसम के उतार चढ़ाव की वजह से बार बार लगी इल्लियों से बचाने के लिए किसान 04 बार कीट नाशक महंगे रसायनों को छिड़काव करने के बाबजूद कम फलन की वजह से पिछले साल की तुलना में 20 भी उत्पादन नही मिला। कटाई,गहाई महंगी पड़ रही है।लागत,मेहनत तक नही निकल रही है।
यदि कम उत्पादन के बाबजूद वाजिब भाव में सोयाबीन की मंडी नही हुई तो कर्ज किसानों की आर्थिक कमर तोड़ देगा।
सरकार ने सोयाबीन की mnsp 4850 तय की है। वर्तमान में इससे 1700- रुपये कम में मंडी होने से किसान मायूस है।
सोयाबीन के सस्ते होने की बड़ी वजह सोयाबीन तेल के भाबो में लगभग 60 रुपये लीटर की कमी आना भी है। इस समय सोयाबीन तेल के भाव 135 रुपये लीटर के आसपास बताए जाते है। पिछले साल 190 लीटर तक जा पहुचे थे। इस भारी अंतर से आम उपभोक्ता दीवाली मना रहा हे तो किसानों का कचूमर निकल रहा है। महंगाई का रोना रोने औऱ राजनीतिक विलाप करने वालों को खाद्य तेल भी सस्ता चाहिए और सोयाबीन के भाव भी 06 हजार के ऊपर चाहिए। ये दो बातें एक साथ चल सकती है? शायद नही। मगर राजनेताओं ओर कथित किसान नेताओँ को इससे कोई मतलब नही।
इसमें कोई दो मत नही कि सोयाबीन की उत्पादन लागत बहुत अधिक है। खेत से खलियान तक लाने के बीच महंगे भारी कीट नाशको का प्रयोग करना पड़ता है। तब जाकर सोयाबीन चेत पाती है।
इस साल खासी कसरतों के बाबजूद वांछित उत्पादन नही मिला।
समझदार,दूरदर्शी किसानों ने सोयाबीन से आंखे फेर मक्का, धान, जुआर, रागी आदि में भाग्य आजमाने वाले खुश है। मोटा अनाज उत्पादको को सरकार 100 रुपये किवंतल अतिरिक्त लाभ देने की घोषणा कर चुकी है। जबकि सोयाबीन के लिए अनेक पेचो में उलझी भावातर योजना का लाली पाप थमाया है।